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कुछ राज्य अवैध कत्लखानों को बंद करवाने की कार्यवाही कर रहे हैं। भारत में बिना लाइसेन्स वाले लगभग 30,000 गैर कानूनी कत्लखाने हैं। इसलिए बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में राज्य सरकारों ने, उन कत्लखानों को बंद कराने की मुहीम प्रारम्भ की है जो क़ानून को अनदेखा कर लगातार जानवरों पर अत्याचार कर रहे हैं। किन्तु अन्य राज्यों में ऐसा क्यूँ नही हो रहा ?
वर्ष 2004 से 2017 तक PETA इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में जानवरों के अवैध परिवहन एवं कत्लखानों में उनकी हत्या के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है जिस हेतु जानवरों को अवैध तरीकों से ट्रकों में भरकर कत्लखानों में ले जाने के पर्याप्त सबूत पेश किए थे। भीड़भाड़ वाले ट्रकों में उनका परिवहन गैर कानूनी है क्यूंकि उनका दम घुटता है व हड्डियाँ टूट जाती हैं। थके हुए जानवरों को कत्लखानों में ले जाने हेतु जबरन चलाने के लिए देखभाल कर्ताओं द्वारा उनकी आंखो में तंबाकू व मिर्ची पाउडर डाल दिया जाता है या उनकी पुंछ तोड़ दी जाती है। कत्लखानों के अंदर श्रमिक अन्य जानवरों के सामने ही इन जानवरों का एक एक कर गला रेंत देते है जो की कानून का उलंघन है।
फरवरी 2017 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने समस्त राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम व नियमों का पालन करने का आदेश दिया था किन्तु कुछ मुट्ठी भर राज्यों ने ही इस पर अमल किया है।
यह याद रखना जरूरी है की डेयरी उद्योग ही मांस उद्योग को मवेशियों की आपूर्ति करता हैं। गाय भेंस के मांस पर आधारित इस उद्योग को मुख्यता बैलों व दूध न देने वाली गायों की आपूर्ति भी की जाती है। दूध, मखखन, क्रीम, मलाई इत्यादि की मांग को पूरा करने के लिए आप गैर डेयरी उत्पाद लेकर, न सिर्फ गौमांस की मांग को समाप्त करने में मदद कर सकते हैं बल्कि क्रूर लैदर की मांग में भी कमी ला सकते है तथा कत्लखानों में मारे जाने के लिए भीड़भाड़ वाले ट्रकों में ठूसकर ले जायी जाने वाली गायों की संख्या को भी कम सकते हैं।