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व्यापक तौर पर उपयोग होने वाला बलपूर्वक तैराकी परीक्षण (फोर्स्ड स्विम टेस्ट) जितना क्रूर प्रयोग है उतना ही अव्यवहारिक भी है। इस प्रयोग में प्रयोगकर्ता पानी भरे कंटेनरों में मूसों, चूहों, गिनी पिग, हैम्सटरों या जेरबिल्स को डाल देते हैं। डरे हुए जीव बाहर निकलने के लिए बीकर के किनारों से ऊपर चढ़ने का प्रयास करते हैं या बच निकलने की जगह की तलाश में पानी में गोते तक लगाते हैं। वे बेचैनी में बड़ी तेजी से हाथ-पांव मारते हैं, और किसी भी तरह अपने सिर को पानी से ऊपर रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन अंत में वे मर जाते हैं व उनका मृत शरीर तैरने लगता है।
इस प्रकार के कुछ परीक्षण तो 1950 के दशक से ही किए जा रहे हैं। कुख्यात जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रयोगकर्ता कर्ट रिचर ने चूहों को पानी के सिलेंडर में तैरने के लिए तब तक मजबूर किया जब तक वे डूब नहीं गए। साल 1977 में रोजर पोर्सोल्ट नामक एक प्रयोगकर्ता द्वारा इसे लोकप्रिय बनाया गया, जिसने इसे "बिहैवियरल डिस्पेयर टेस्ट” (व्यवाहारिक विषाद परीक्षण) कहा। पोर्सोल्ट ने पाया कि जिन चूहों को मानव अवसादरोधी दवाएं दी गई थीं, वे दूसरे चूहों के मुकाबले अधिक समय तक संघर्ष करेंगे और तैरेंगे। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि जो चूहे कम समय ही तैर सके वे "निराशा" की अवस्था में थे। लेकिन उनके इस प्रयोग की अन्य वैज्ञानिकों द्वारा जबरदस्त आलोचना की गई है जो तर्क देते हैं कि तैरना निराशा का संकेत नहीं है, बल्कि सीखने, ऊर्जा संरक्षण और एक नए वातावरण के अनुकूलित होने का एक सकारात्मक संकेत है।
40 से अधिक वर्षों के बाद भी यूनिवर्सिटी और फार्मास्यूटिकल प्रयोगशालाओं में, जानवरों को ड्रग्स देकर पानी के सिलेंडर में फेंक दिया जाता है ताकि प्रयोग करने वाले यह माप सकें कि वे कितने समय तक संघर्ष करते हैं।
1993 से लेकर 2018 के दौरान प्रकाशित पेटेंट एप्लिकेशन व 19 प्रकाशनों से यह साबित हुआ है की फार्मास्युटिकल दिग्गज Eli Lilly ने 3201 छुछुंदरों एवं 234 चूहों को “जबरन तैराकी परीक्षण” (फोर्स्ड स्विम टेस्ट) के लिए इस्तेमाल किया है। PETA-अमेरिका के वैज्ञानिकों ने 47 कम्पाउंड्स की पहचान की है जिनका जानवरों पर परीक्षण किया गया था और उन्होंने पाया कि उनमें से 36 को अवसादरोधी लक्षणों की संभावना के तौर पर जबरन तैराकी परीक्षण के लिए उपयोग किया गया, जबकि इनमें से कोई भी कम्पाउंड वर्तमान समय में मनुष्यों में अवसाद के इलाज के लिए मान्यता प्राप्त नहीं है।
“जबरन तैराकी परीक्षण” सही तरह से यह अनुमान नहीं लगा सकता कि क्या यह दवा एक मानव अवसादरोधक के रूप में काम कर पाएगी। यह ऐसे कम्पाउंड्स के लिए सकारात्मक निष्कर्ष देता है जोकि मनुष्य अवसादरोधी के रूप में मान्य नहीं हैं, जैसे कि कैफीन या जिन कम्पाउंडो के नकारात्मक परिणाम होते हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि अवसादरोधक कम्पाउंड जोकि मनुष्यों में काम कर सकती हैं, वे इस टेस्ट के आधार पर गलती से छोड़ दी जा सकती है।
सारांश: जबरन तैराकी परीक्षण एक घटिया वैज्ञानिक प्रयोग है। ये प्रयोग जानवरों को आतंकित करने और नए प्रभावी उपचारों के विकास, जिनकी सख्त जरूरत है को स्थगित करने से ज्यादा कुछ नहीं करते हैं।
PETA-अमेरिका के साथ विचार-विमर्श के बाद, Johnson & Johnson, Pfizer, Bayer, Roche तथा AbbVie ने यह घोषणा की कि वह अब इस क्रूर परीक्षण का प्रयोग या इस हेतु वित्तीय सहयोग नहीं करेंगे! व अभी हाल ही में Bristol-Myers Squibb भी इन कंपनियों की सूची में शामिल हो गया है।
लेकिन Eli Lilly फार्मास्युटिकल दिग्गज अभी भी प्रतिबंध लगाने से इनकार कर रही है। नीचे कार्रवाई कर, उन्हें बताइए कि आप उनकी इन घटिया हरकतों के बारे में क्या सोचते हैं।